Wednesday, May 23, 2018

पापा आखिर इतनी बड़ी कब हो गयी मैं?
देखिये न पापा कल की ही सी बात लगती है जब आप कहते थे की क्या होगा तुम्हारा? कैसे रहोगी तुम? और मेरे पास हमेशा आपकी बात का जवाब होता कि वक़्त रहते सीख जाउंगी न क्यों ग़ुस्सा करते हो!
पापा क्या आज भी ऑफिस से आने के बाद गेट खटखटाकर मेरा नाम पुकारते हो?
याद है पापा आपको कि हमेशा शाम को मैं आपके आते ही आपका बैग लेने के लिए दौड़ पड़ती थी क्योंकि मैं जानती थी कि आप हमेशा की तरह उस बैग में मेरे लिए कुछ ना कुछ तो होगा!।
तो क्या आज भी दफ़्तर से आने के बाद वो आदत छूटी नही आपकी?
पापा आप बहुत याद आते हो।
वो आपका बात बात पर डाटना और फिर बाद में मेरे रूठ जाने पर मुझे मनाना याद आता है मुझे।
क्या आपको भी याद आती है मेरी पापा?
क्या आप भी मुझे याद करके छुपके से रो दिया करते हो जैसा कि मैं आपको याद करके किया करती हूं?
पापा यहाँ सब हैं कुछ दोस्त और कुछ बहुत अच्छे दोस्त ,
लेकिन यहाँ आप जैसा कोई नही पापा।
पापा आज भी याद है जब मैं अंजान सड़को पर आपकी उंगली थामे चला करती थी पर आज कोइ नही है पापा,
पीछे मुड़के देखती हूं तो सिर्फ नज़र आते हैं मैं और मेरी तन्हाई।
क्या फिरसे वो वक़्त लौट के नही आ सकता पापा?
जानती हूं कि बेटे का ना होना खलता होगा कही ना कहीं आपको,
पर पापा जो कभी सपने आपने देखे थे उन्हें पूरा करना चाहती हूँ।
मैं जानती हूं कि वक़्त के साथ सारे शौक मर चुके हैं आपके,
पर पापा एक बार फिर मैं उन शौकों को जिंदा करना चाहती हूं।
क्या वो सब होगा ना पापा?
क्या वो सब होगा ना पापा?
बिना उसके न इक पल भी गंवारा है,
पिता ही साथी है, पिता ही सहारा है।

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